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नारी जो है सो क्यों

स्वाति लोढ़ा

प्रकाशक : फ्यूजन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :209
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6907
आईएसबीएन :81-288-0851-6

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यह एक ऐसी पुस्तक है जो महिलाओं को अपने लिए एक विशिष्ट स्थान, महत्त्व व आदर पाने के लिए सशक्त बनाती है...

Nari Jo Hai So Kyon - A Hindi Book - by Swati Lodha

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यदि आप किसी की पुत्री, पत्नी या मां हैं, तो यह पुस्तक आपका हाथ पकड़कर मार्गदर्शन करेगी। यदि आप पुत्र, पति या पिता हैं, तो यह पुस्तक आपके कर्तव्यों की पूर्णता की ओर प्रेरित करेगी। नारी जगत् जननी है। आइए इस जगत् को नारी के अनुकूल बनाएं।
स्वाति लोढ़ा ‘‘स्वाश व्यक्तित्व विकाश (प्रा.) लि.’’ की संस्थापक निर्देशिका हैं। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न स्वाति-एक प्रशिक्षक, संचालक, लेखक व प्रखर वक्ता भी हैं। बतौर कारपोरेट प्रशिक्षक एवं प्रवक्ता, स्वाति अपने पति शैलेश के सहयोग से एक वर्कशॉप—‘यू मेक द डिफरेंस’ का संचालन करती हैं जो काफी लोकप्रिय हुआ है। एक प्रशिक्षक के रूप में वह ‘जोधपुर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ का संचालन करती हैं जो राजस्थान सरकार द्वारा अधिकृत एम.बी.ए. कॉलेज है।

अपने पति के सहयोग से उन्होंने ‘‘कामयाबी कैसे’’ नामक पुस्तक का लेखन किया जो 2002 की बेस्ट सेलर रही। उनकी समर्पण व विश्वास हमेशा ही अविश्वसनीय मुद्दा रहा है। उनका समर्पण नई चेतना जगाता रहा है। मात्र 21 वर्ष की आयु में स्वाति ने ‘स्वाश’ की अवधारणा को साकार किया। इनकी ईमानदारी एवं लक्ष्य प्रलक्षित प्रयास वर्कशॉप के भागीदारों के लिए रोल मॉडल बन गया है। विचारों में तटस्थता व अनुशासन काफी प्रभावशाली है। स्वाति के स्पष्ट विचारों ने इस पुस्तक को विशेष आधार प्रदान किया है।
एक किताब
औरतों के लिए
औरतों की
औरत द्वारा
(अतः) हर पुरुष के लिए अत्यंत पठनीय)

दो शब्द

जब कोई नई बच्ची इस दुनिया में आती है वह पूरी तरह से अपनी मां और आसपास मौजूद लोगों पर ही निर्भर होती है।
जब मुझे यह किताब लिखने का विचार आया, तो यह एक नवजात शिशु की तरह ही था। चूंकि किसी तरह का बाहरी सहारा नहीं था, इसलिए मैंने इस खयाल को अपने दिमाग में जड़ कर लेने के लिए बार-बार टटोला।

आपके सामने इस काम को पेश करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है, जो मेरे अन्दर ही अन्दर एक लम्बे समय से पनप रहा था। यह किताब लिखना मेरे लिए कुछ नया सीखने का एक बहुत बड़ा अनुभव था। इस दौरान मैंने अपने ही विचारों को व्यवस्थित किया और शब्दों के एक ढांचे में बांधा। मैंने इस सच्चाई को भी महसूस किया कि भारतीय महिलाएं सबसे अलग हैं और मैं भारतीय महिलाओं के सैल्फ-मैनेजमैन्ट को केन्द्रित करना चाहती थी। हमारा समाज भूमिकाओं और परम्पराओं में बंधे होने के कारण किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की तुलना में उस व्यक्ति पर अधिक प्रभाव डालता है।
भारतीय महिला किसी भी परिवार का सदस्य पहले होती है, बाद में वह अपने-आप में महिला कहलाती है। वह अपनी सारी जिन्दगी एक महानायिका के रूप में बिता देती है और ऐसा करने के भाव उसके अन्दर भीतर तक जड़ कर जाते हैं।
अब, हालांकि इस महिला के कुछ बाहरी बदलाव देखे जा रहे हैं, तो हम पाते हैं कि महिलाएं पहले से कुछ अधिक विश्वास से भरी हुई और जानकार दिखाई देती हैं। वे काम-काजी हो गई हैं, फैसले खुद लेती हैं और अपना रास्ता खुद तय करती हैं। लेकिन इसके बावजूद मुझे महसूस होता है कि महिलाओं की ‘‘भूमिका’’ ही बहुमुखी और बहुआयामी हुई है। अब वह पहले के मुकाबले अधिक भूमिकाएं निभाने लगी है।

मैंने यह किताब आजाद चेतना और स्वतंन्त्र सोच रखने वाली महिलाओं की खोज में लिखी है। मैंने यह किताब भारत की उन महिलाओं के दिमाग को प्रेरित करने की कोशिश में लिखी है जो अपने गुणों का  भरपूर इस्तेमाल करने के लिए हमेशा आगे रहती हैं, लेकिन अपने खुद के खिलाफ ही।
इस किताब के लिए, मैं बहुत-सी महिलाओं का एक हिस्सा बनी। मैंने उन महिलाओं के भीतर झांकने की कोशिश की जो चुपचाप सब कुछ सहती हैं और वे भी जो अपनी सोच को कहती हैं।
संभवतः यह किताब भारतीय महिलाओं के लिए लिखी गई पहली किताब है।

मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरा यह काम (भारतीय महिलाओं को) खूबसूरत दिखने की टिप्स, व्यंजनों की ‘रैसिपी’ और संबंधों की भूलभुलैया से परे कुछ और देखने के लिए बढ़ावा देगा। यह किताब उन सब महिलाओं की मदद करेगी, जो अपनी मदद स्वयं करना चाहती हैं। यह किताब उन्हें आदर, गरिमा और उनकी दुर्लभ प्रतिष्ठा बनाए रखने का लक्ष्य रखती हैं।
यह किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई है। अतः कई जगहों पर हिन्दी शब्द भावनाओं को प्रदर्शित करने में असमर्थ रहे हैं। कई जगह अंग्रेजी से ही काम चलाना पड़ा है। मैंने पूरा प्रयास किया है कि पुस्तक का मंतव्य प्रभावित न हो परंतु भाषाओं की अपनी अपनी आत्मा है।
एक महिला की तरफ से समस्त महिलाओं व पुरुषों को एक भेंट।

अगस्त, 2004

                                 स्वाति लोढ़ा
मैं सपने देखता हूं
पा लेता हूं, सब कुछ
मैं भाग्य विधाता हूं
संभव करता हूं, सब कुछ
आप ठीक समझे,
‘मैं’ एक ‘पुरुष’ हूं।
तुम एक मां हो
पत्नी और बेटी भी तुम ही
अपना लेती हो
घटता है, आस-पास सभी
मैं जानता हूं
‘तुम’ एक ‘औरत’ हो
‘मैं’ एक पुरुष हूं। ‘तुम’, स्त्री हो।


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